हिन्दी व्यंग कविता : ये उल्टो की दुनियां हैं

जो बने दरोगा फिरे  शहर में
उनका बेटा पाकिटमार हैं,
और जिसका बेटा बना हैं
डॉक्टर उसका बाप घर मे बीमार हैं ये उल्टो की दुनियां हैं हा ये उल्टो की दुनियां हैं,,,,,,,2
जो रायचन्द बनकर हैं फिरते
सब को खूब समझाते है ,
छोटी बड़ी हर बात पर वो सब
को रॉय देने पहुँच जाते है,
खुद के घर में उनकी कोई नही
सुनता वो खुद को ज्ञानी बताते है रॉय देने आजाते हैं,
ये उल्टो की दुनियां हैं,,,,,,2
जिनकी खुद की थाली में भात
नही है  वो भण्डारे करवाते है,
धर्म के नाम पर दान जमा कर
खुद का घर चलाते है, राम नाम
की आड़ में  खूब धन बनाते है,
ये उल्टो की दुनियां हैं,,,,,2
चोर यहाँ साहूकार बने है
सेठ को देते गाली, चोर उच्चके
और लुटेरे करते है रखवाली,
भोला जिनका मुखडा दिखता
नियत उनकी काली हांजी नियत
उनकी काली,
ये उल्टो की दुनियां हैं,,,2
आरछण के चलते देखो होता सत्यानाश , अनपढ़ सारे बन गए
शिक्षक और ज्ञानी छिले घास ,
अनपढ़ देखो बड़े मजे से करते है बकवास, बीच नदी मे होके
खड़े वो कहते लगी हैं हमको
प्यास , करते है बकवास रे भइया करते है बकवास,,
ये उल्टो की दुनियां हैं,,,,,,2
जितना लिखू मैं उतना कम हैं
ये उल्टो की दुनियां हैं,
तेल बेचता ऑफिसर और ऑफिसर बन गया बनिया हैं,
हल्दी निम हो गई विदेशी
और हम सब यहाँ पीस रहे बस
धनिया हैं, ये उल्टो की दुनियां हैं,,,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )

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